कोरोना से बचाव के लिए ग्रामीण महिलाओं ने घूंघट को बनाया ढाल

हरियाणा से लगते दिल्ली के गांवों में कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए अधिकतर महिलाएं मास्क की बजाय घूंघट का इस्तेमाल कर रही हैं। वर्षों से घूंघट लेने के रिवाज को ही महिलाएं इस महामारी से लडने का जरिया बना चुकी हैं। महिलाओं का कहना है कि वर्षों से बड़े बुजुगों के सामने घूंघट की प्रथा उन्हें इस गंभीर संक्रमण से बचाव के लिए भी कारगर साबित हो रही है।


गांवों में साफा(पगड़ी)को भी बुजुर्ग इस संक्रमण से बचाव के लिए इस्तेमाल में ला रहे हैं।
गांव इसापुर निवासी वीरेंद्र सिंह डागर का कहना है कि गांवों में सदियों से चली आ रही परंपरा के तहत घूंघट का रिवाज है। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए मास्क की बजाय महिलाएं घूंघट या चुन्नी का उपयोग कर रही हैं। यह भी कपड़े से तैयार किया गया है, जिससे परंपरा के साथ साथ संक्रमण से बचाव भी किया जा रहा है।
गांव ढांसा निवासी करमजीत ने बताया कि संक्रमण से बचाव के लिए मास्क की जगह परंपरागत परिधान ही काफी है। महिलाओं का कहना है कि वर्षों से घूंघट या चुन्नी डालने का रिवाज है। गांव में अधिकांश लोग घर और खेतों तक ही आना जाना रहता है। कुछ नौकरीपेशा लोग अगर बाहर जा भी रहे हैं तो सभी तरह के एहतियात बरत रहे हैं।
गांवों में अधिकतर पुरुष साफा डालते हैं, इसलिए संक्रमण से बचाव के लिए बाहर निकलने पर इसी साफा से बचाव कर रहे हैं।
नमस्ते और राम राम का रिवाज भी साबित हो रहा है कारगर
गांवों में अभी भी एक दूसरे से मुलाकात होने पर अभिवादन के तौर पर एक दूसरे को परंपरागत नमस्ते या राम राम करते हैं। इससे जहां एक दूसरे से दूरी बनाए रखते तो दूसरी तरफ हाथ मिलाने का रिवाज न होने से संक्रमण का खतरा भी काफी कम है। खेतों में काम करते वक्त भी सभी एक दूसरे से उचित दूरी बनाए रखते हैं तो जरूरी काम के लिए अगर दुकान पर जाना भी पड़े तो नजफगढ़ क्षेत्र में उचित दूरी पर सभी लोग रहकर लॉकडाउन का पूरी तरह पालन कर रहे हैं।